गणेश चतुर्थी का उत्सव
गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, यह सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व भी है। इस दिन घर-घर और पंडालों में गणपति प्रतिमा स्थापित की जाती है।
दस दिनों तक लोग भजन-कीर्तन, धार्मिक प्रवचन, सांस्कृतिक कार्यक्रम और सामाजिक गतिविधियाँ आयोजित करते हैं।
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महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की भव्यता
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का उत्सव अत्यंत भव्यता से मनाया जाता है। यहाँ लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गणेश उत्सव को सार्वजनिक स्वरूप दिया था। उन्होंने इसे राष्ट्रीय एकता और सामाजिक जागरूकता का माध्यम बनाया।
मुंबई का लालबागचा राजा और सिद्धिविनायक मंदिर इस दौरान विशेष आकर्षण का केंद्र बनते हैं। लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ते हैं।
गणेश विसर्जन की परंपरा
दसवें दिन यानी अनंत चतुर्दशी को गणपति विसर्जन किया जाता है। भक्त बड़े हर्षोल्लास और उत्साह के साथ बप्पा को विदा करते हैं।
ढोल-ताशे, नृत्य और जयकारों के बीच गणेश प्रतिमा को जल में विसर्जित किया जाता है।
उस समय वातावरण "गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" के नारों से गूंज उठता है।
गणेश चतुर्थी का सांस्कृतिक महत्व
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सामाजिक एकता – यह पर्व समाज को एकजुट करता है।
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कला और संस्कृति का संगम – पंडालों में सजावट, मूर्तिकला और संगीत से सांस्कृतिक विविधता झलकती है।
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शिक्षा और संस्कार – बच्चों और युवाओं में धार्मिक आस्था और नैतिक मूल्यों का विकास होता है।
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राष्ट्रीय भावना – स्वतंत्रता संग्राम के समय इस पर्व ने जन-जागरण का कार्य किया।
पर्यावरण और गणेशोत्सव
आजकल पर्यावरण संतुलन के लिए पर्यावरण अनुकूल गणेश प्रतिमाओं की स्थापना को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। यह प्रतिमाएँ शुद्ध मिट्टी, गोबर या प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती हैं, ताकि विसर्जन के समय प्रदूषण न फैले।
गणेश चतुर्थी और आस्था
भक्त मानते हैं कि गणेश जी की पूजा से विघ्न दूर होते हैं और जीवन में नई ऊर्जा आती है।
व्यापारी वर्ग गणेश चतुर्थी पर विशेष पूजा करता है ताकि व्यापार में उन्नति हो।
निष्कर्ष – भाग 2
गणेश चतुर्थी आस्था, संस्कृति और उत्साह का पर्व है। यह केवल भगवान गणेश की आराधना नहीं बल्कि सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है।

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